Sunday, 6 July 2014
बायजा माँ और प्रभु साईनाथ जी का संवाद
बायजा माँ और प्रभु साईनाथ जी का संवाद हमें परमात्मा की सहज लीला एंव उनकी मात्रु भक्ती का दर्शन कराता है ।
उसी वक्त एक माँ कैसे
माँ और भक्त दोनों भुमिका निभाती है ये भी हमें पता चलता है ।
जहाँ बाबा को पता है की बायजा माँ का व्रत है की मुझे खिलाये बगैर खाना नहीं खाएगी इसी वजह से वो त्वरा /जलद गती से माँ के पास खुद पहुँच जाते है ।
इसी माता की वजह से उनका कष्ट बचाने हेतु बाबा ने मशिद माई में रहने का निर्णय लिया था ।
परमात्मा भागते हुए आता है और माँ को गिरने से बचाता है , लेकिन अपनी मर्यादा की वजह से वो माँ की बीमारी देख दुखी भी होता है ।
माँ कहती है की मैंने भेजा था सन्देश ।
किस के हातों में : तेरे ही हातों से तुझेही भेजा था ।
क्योंकी तू ही है जो तुझ तक मुझे पहुँचा सकता है । तुझ तक संदेश पहुंचाने के लिए किसी और माध्यम की जरुरत नहीं ।
तू मन की बात जानता है , इसी लिए तो भागते भागते आया मेरा व्रत न टूटे ईस लिए ।
माँ अपने हातों से बाबा को खाना खिला रही है और विश्राम लेने के लिए कह रही है ; खुद की बिमारी भूल ही गयी है । अपने अस्तित्व का परमात्मा के अस्तित्व के आगे दुय्यम स्थान रखाना यही भक्ति है :श्रीमद पुरुषार्थ ।
माँ की निस्वार्थ भक्ति और वात्सल्य बाबा को भाता है । वैसे बाबा के पास कई लोग आते थे ; लेकिन माँगने के लिए । और बायजा माँ कष्ट उठा रही है देने के लिए । बाबा को खाना मिले और आराम मिले ; मेरा बेटा दुनिया भर के दुःख हरता है दिन रात भागते दौडते रहता है , भक्तों के लिए ; लेकिन उसे भी आराम चाहिए ये बात सिर्फ एक माँ का ह्रदय ही जान सकता है समज सकता है ।
इस संभाषण को पढ़ते हुए मीना वैनी की याद न आये ऐसा हो ही नहीं सकता ।
साईं निवास c d में हम देखते है की जगन्नाथ पुरी उत्सव के पहले अपने मन का दुःख कहने हेतु ये मानवी अवतार सद्गुरु बापू सिर्फ मीना माई के पास ही पहुंचते है । मीना माँ एक माँ और एक भक्त दोनों ही परमात्मा की सेवा में तत्पर थी । चाहे बीमार हो या स्वस्थ उन्होंने खुद की कभी पर्वा की ही नहीं ।
तभी तो वे कह सकती है
बाळ म्हणुनी टिट लावता केले मजसी पूर्ण काळी ।
माँ अपना रंग भुला बैठी ।
और आद्य पीपा दादा का वचन
रांगत रांगत आला हरि
यासी घेतले सत्वरि
हा राम कृष्ण हरि
हा बाळ विठे वरला
एक भक्त की परमात्मा को पाने के लिए सत्वर होना पडता है और वो सत्वर ता हमें अनिरुद्ध प्रेम ही दे सकता है ।
मै अंबज्ञ
हूँ
हम सभी अंबज्ञ है
क्योंकि बायजा माँ को जो परमात्मा मिला अब कितने ही सालों बाद हमें भी मिला है ।
डॉ निशिकांतसिंह विभुते ।
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